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यातायात / मोहन राणा

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धुआँ पार करता पुल को

अवसाद मन्थर बहता नदी में

कोयले से लदी गाड़ी पार करती फ़ाटक को,

बिजलीघर की चिमनियाँ फूँक भरती शरद के आकाश में


कोलाहल में बिकता शाम का अख़बार

कोलाहल में नहाने जा रहा है हाथी

कोलाहल में थमा यातायात

कोलाहल में तिपहिया चालक देखता शीशे में दाँतों को

लाल दाँत

लाल बत्ती पर!

कब होगी हरी यह मैं सोचता


01.11.1994 दिल्ली