भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद / गौरव गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे
दिन, तारीख़, साल याद नहीं
याद है बस इतना
जब हम मिले थे
सर्दियों की धूप खिली थी।
और
जब तुम गयी
आसमां में अँधेरा छाया रहा देर तक
रात भर बारिश हुई थी, उस रोज़
बस इतना याद है।