Last modified on 18 अगस्त 2018, at 21:37

याद आता है रोज़ो-शब कोई / नासिर काज़मी

याद आता है रोज़ो-शब कोई
हमसे रूठा है बेसबब कोई

लबे-जू छांव में दरख़्तों की
वो मुलाक़ात थी अजब कोई

जब तुझे पहली बार देखा था
वो भी था मौसमे-तरब कोई

कुछ ख़बर ले कि तेरी महफ़िल से
दूर बैठा है जां-ब-लब कोई।

न ग़मे-ज़िन्दगी न दर्दे-फ़िराक़
दिल में यूँ ही सी है तलब कोई

याद आती हैं दूर की बातें
प्यार से देखता है जब कोई

चोट खाई है बारहा लेकिन
आज तो दर्द है अजब कोई

जिनको मिटना था मिट गये 'नासिर'
उनको रुसवा करे न अब कोई।