भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद आ रही नानी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
लिए बाल्टी रस्सी, बिल्ली,
पहुँची भरने पानी।
देखा झाँक कुएँ में तो था,
बहुत जरा-सा पानी।
नहीं बाल्टी डूबी जल में,
एक बूँद न आई।
बिल्ली ने कूएँ के भीतर,
एक छलाँग लगाई।
खूब पिया बैठे-बैठे ही,
ठंडा-ठंठा पानी।
अब बाहर वह कैसे निकले,
याद आ रही नानी।