या तन तपन परै दिन रैन, बुझत नहीं बिन गुरु की सैन।
सतगुरु शब्द कीनो प्रकाश, जागो बृम भई कर्म नास।
जाय निरख तन गयो दुख, जुग-जुग बाड़त अपार सुख।
या तन पाय छोड़ झनकार, सिर पर उनहीं काल की धार।
हर नाम सुमर के लगो तीर, खोवो नहिं विरथा सरीर।
चेत-चेत दिल मंह देख, एक वृभ घट-घट विशेष।
समझ विचार करो संबंध, जूड़ीराम गुरु चरन बंद।