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युग-विहग / महेन्द्र भटनागर

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शून्य नभ में युग-विहग तुम
एक गति से ही उड़ोगे,
तुम उड़ोगे !

रुक नहीं सकते कभी भी
पंख उठते और गिरते ही रहेंगे,
थक नहीं सकते कभी भी;
राह पर आ मेघ घिरते ही रहेंगे,
विश्व को संदेश नूतन
मुक्ति का दे, तुम बढ़ोगे,
तुम बढ़ोगे !

अग्नि-पथ पर, स्वस्थ मन से,
आत्म-संबल के सहारे और निर्भय,
पद-प्रदर्शक, ज्ञान-दीपक,
नव-सृजन से, सर्वहारा-वर्ग की जय,
युग-विरोधी शक्तियों को
तुम चुनौती दे चढ़ोगे,
तुम चढ़ोगे !