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युद्ध और प्रेम / कल्पना पंत
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मैं तुमसे मिलने आई
प्रेम की उद्दाम कामना लिए
अँगारों पर लोटती नायिका की भांति अभिसार के लिए नहीं
अपने भीतर भरे आदिम भय से मुक्ति की चाहत लिए आई
मैं आई विद्रोह लिए आई
रुढियों, आनर किलिंग, बलात्कारी हत्याओं, मौरल पुलिसिंग के ठेकेदारों को यह दिखाती आई
कि प्रेम अंतत: प्रेम है
तुम लाख नफरत फैला लो
जीतेगा अंततः प्रेम ही
रंग, रक्त, धर्म, वक्त
कितना ही विलगालो
जीतेगा बस प्रेम ही।