यूँ ही करती रहूँ तुमसे प्रेम / रेखा चमोली
अगर तुम चाहते हो
मैं हमेशा यूँ ही करती रहूँ तुमसे प्रेम
तों तुम्हें रोज खुद को संवारना होगा
अपनी कमियों पर निरंतर रखनी होगी नजर
उन्हें ठीक करने की करनी होगी कोशिश
और देखना होगा कहीं तुम
अपने आसपास रहने वालों के लिए
असुविधा और खीझ का कारण तो नहीं
तुम्हें हाथ बंटाना होगा उन कामों में
जिन्हें तुम छोडते आए हो
किसी और की जिम्मेदारी समझ
ध्यान से देखने समझने होंगे वे छोटे-बडे काम
जो हमारा जीवन जीने योग्य बनाते हैं
उन्हें करने वाले हाथों का करना होगा सम्मान
उनके श्रम का चुकाना होगा उचित मूल्य
अपना काम निकालने के लिए
थोडी बहुत चापलूसी भले ही कर लो दूसरों की
क्योंकि मूर्खों से भरी पडी है ये दुनिया
पर गलत को गलत ही कहना होगा
सही का साथ देने को होना होगा तत्पर
जब मुझे तुम्हारी जरूरत हो
तुम ना आ पाओ मेरे पास तो चलेगा
पर अपना कोई दुख गुस्सा मुझसे ना छुपाओ
हम एक दूसरे की सारी बातें जानें
पर जब कोई रहना चाहे चुप
तो उसे भीगने दें अवसाद की खामोशी में
और जब वह अपनी चुिप्पयों की पंखुडियाँ खोल रहा हो
अपने ह्नदय की गहराई में समेट लें उसे
तुम्हारी खुशी में मैं शामिल रहूँ
मेरी खुशी तुम्हारे साथ कई गुना बढ जाए
हम साथ-साथ सीखें
आगे बढ़ें
हारें -जीतें
जिंदगी की छोटी-बडी बाजियां
उम्र के साथ कुछ चीजें धूमिल हो जाएंगी
पर मैं चाहती हूँ
जब भी तुम्हें याद करूँ
मेरा ह्नदय भर उठे गर्व से
मेरा रोम रोम प्रेम से उपजी आभा से दीप्त हो
ऑखों में तरलता हो
तुम्हारी बातें करते हुए मैं खिल उठूॅ
और मेरे बच्चे मुझसे कहें
हाँ माँ ! वो तो है ही प्रेम करने लायक
उससे कौन न प्रेम करे।