भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यों तो परदे नज़र के रहे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यों तो परदे नज़र के रहे
प्यार हम उनसे करके रहे

वे न भूलेंगे वादा, मगर
उम्र भर कौन मरके रहे

याद कर भी तो लो, दोस्तो!
हम भी साथी सफ़र के रहे

चलते-चलते कटी ज़िन्दगी
फ़ासिले हाथ भर के रहे

कौन पत्तों में देखे, गुलाब!
लाख तुम बन-सँवरके रहे