मेरे जाहिल देश!!
सपेरों मदारियों के देश मेरे
आज जी भर हँस लो,
और ऐसे हँसना कि तुम्हारे ठहाके
होते रहें प्रतिध्वनित
फोड़ते रहें बहरों के कान
डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर
समय है फब्तियाँ कसने का...
पानी के छींटे मार बच्चों को सोते से जगाओ
राम दुलारे-अल्ला रक्खा
घर से निकलो, चौपाल सजाओ
मसाले के सौदागर जो राजा हो गए थे
फिर सभ्यता का शोर-शराबा, ढोल-बाजा हो गए थे
दो-सौ साल के गुलामों, व्यंग्य की मुस्कुराहट
तुम्हारे ओठों पर भली लगेगी
और “भौजी” के गालों पर गड्ढे सजेंगे
उन चौपट राजाओं की अंधेर नगरी की मोतियाबिन्द आँखों
चमक उठो, बात ही एसी है...
हँसना इसलिए जरूरी है
कि तुम्हारी सोच, समझ और ज्ञान पर कंबल डाल कर
जो ए०बी०सी०डी० तुम्हें पढ़ाई गई
और तुम जेंटलमेन बन कर इतरा रहे हो
भैय्या कालू राम!! वह ढोल फट गया है
गौर से गोरी चमड़ी के श्रेष्ठ होने की सत्यता को देखो
दीदे फाड़ देखो...
एक दुपट्टा ले कर अपनी बहन के कंधे पर धर दोगे
जिसके साथ मॉडर्न होने का दंभ भर कर
रॉक-एन-रोल करना
तुम्हारे प्यार करने का ईम्पोर्टेड तरीका है
खीसें मत निपोड़ो
गेलेलियो का ज्ञान नहीं मनोविज्ञान पढ़ो
और न समझ आए तो
सिलवर स्ट्रीट चर्च के बर्तानी पादरी
साईमन फरार की बातें सुनो
कि योग गैर-ईसाई है !!!!
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जाएगा
पर दुहाई तो दुहाई है
फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे
चश्मा उतर गया है मान्यवर
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गड़ा कर
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ
आओ मदारियो, सपेरो....