रंगमंच / निधि अग्रवाल
अच्छे होने की एक बड़ी समस्या यह भी है,
कि आपको किसी की अच्छाई पर संशय नहीं होता।
आपको लगता है गर यह दुनिया है, तो इसी दुनिया में
कहीं न कहीं अच्छे लोग ज़रूर उपस्थित हैं।
आप मानते हैं कि लोगों को अच्छा होना ही चहिए,
आप हर जगह केवल अच्छाई तलाशते हैं।
इस सत्य के प्रति आँखें मूँदे,
कि अगर दुनिया वाकई अच्छी होती,
तो आप अकेले बैठ अकविता लिखने की बजाय,
दोस्तों की भीड़ में हँस- गा रहे होते।
आप मंत्रमुग्ध मोर का नाच देखते हैं।
अमुक आऍंगे- बताऍंगे देखो इसके पैर कैसे कुरूप हैं।
आप कहेंगे लेकिन नाच कैसा सुंदर!
वे कहेंगे हुँह पैर तो देखो!
आपका मन उचट जाएगा।
पैरों की कुरूपता से नहीं,
उनकी विचारों की कुरूपता से।
अब आप पुनः नाच देखने लगते हैं,
तो ध्यान देते हैं,
पैरों पर नहीं, रंगों पर।
पंखों के मोहक रंग सब नकली हैं,
नहीं, नहीं पूरे पंख ही नकली हैं।
आँखों में कुछ किरकिराता है,
आप आँख रगड़ते हैं,
पुनः खोलते हैं।
पंख एक ओर रखे हैं,
और एक कुरुप वीभत्स जीव
बेध्यानी में गहरी सॉंसें ले रहा है।
आपके गले में कुछ फँसता है,
इसे निगल लीजिए।
रुकिए! जाइए नहीं।
जीव उठता है।
नफ़ासत से एक- एक पंख सजाता है,
अब नाच स्टेज पर हो रहा है।
आप वापस लौटना चाहते हैं?
माफ कीजिए! नहीं जा सकते।
आप अदृश्य धागों से बँध चुके हैं।
आप अपनी पूरी शक्ति लगाकर बंधन तोड़ देते हैं।
पुनः माफ़ी, आप अभी भी नहीं जा सकते!
आपकी तमाम कोशिशों को नकारती
भीड़ आपको भीतर धकेल देती है।
हॉल खचाखच भर चुका है,
लोग नृत्य की प्रशंसा में ताली बजा रहे हैं।
जिन्होंने पैरों की कुरूपता दिखाई थी,
वे वन्स मोर! वन्स मोर! चिल्ला रहे हैं।
मंचन स्टेज पर भी है, स्टेज के नीचे भी।
आप किसके लिए ताली बजाना चाहते हैं?
दुविधा में हैं?कोई नहीं!
पंख वही रहेंगे,
नर्तक बदलते जाऍंगे।
नृत्य वही जारी है।
आप ऊब गए? एकांत चाहते हैं?
माफ़ कीजिए। क्या आप देख नहीं पा रहे?
कि अब हॉल में सबके पास सुंदर पंख हैं।
वे सब मित्र हैं,
और मित्रता स्थायी करने के लिए
एक साझा शत्रु आवश्यक है।
उन सबकी ऊँगुलिया आपकी ओर उठी हैं,
फुसफुसाहट में आपका नाम है।
माफ़ कीजिए। नहीं, माफ़ी माँग लीजिए!
क्या आप अभी तक समझ नहीं पाए?
छद्म पंखों की इस महफ़िल में
आप सबसे कुरूप इंसान हैं।