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रंगों का आषाढ़ / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

पुताईवालों के कपड़े
रंगों की बारिश में भीगे हैं
वे एक घर को
इंद्रधनुष में बदल कर आए हैं
खूँटियों पर टाँगते है वे कपड़े
घर की बदरंग दीवारों पर
फैल जाती हैं रंगीन बूँदें
बच्चों को उम्मीद है
रंगों का आषाढ़ आयेगा एक दिन
उनके घर भी
फिलहाल पुताई के कपडों में
वे मानसून की आँधी की तरह दौड़ रहे हैं