भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग : छह कविताएँ-3 (पीला) / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस रंग के बारे में
कोई भी कथन इस वक़्त
कितना दुस्साहसिक काम है
जब जी रहे हैं इस रंग को
गेंदे के इतने और इतने सारे फूल
जब हँस रहे हों
पृथ्वी पर अजस्र फूल
सरसों और सूरजमुखी के
सूर्य भी जब चमक रहा हो
ठीक इसी रंग में
और यही रंग जब गिर रहा हो
सारी दुनिया की देह पर
यह रंग हल्दी की उस गाँठ का है
जो सिल पर लोढ़े के ठीक नीचे
पिसी जाने के इंतजार में है
यह एक बहुत नाजुक रंग है
जिससे रंगी है
लड़कियों की चुन्नी और नींद
सुनो! मुझे खुशी है
कि मैं इस रंग से चीजों को जुदा करने की
साजिश में शामिल नहीं हूँ।