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रंग जमुनिआ, मुँह टुनमुनिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

रंग जमुनिआ, मुँह टुनमुनिया,
देखलहुँ जे आँखि निड़ारि कनिया,
सत्ते कहै’ छी अहाँ जे अयलहुँ
अङनामे अयलै’ बिहाड़ि कनिया।
धूआँ सन मुँह सतत बनौने,
सात पुरूष धरिनाम घिनौने,
अहिंसा दयासँ घर दुआरि सब देलक दाँत चियारि कनिया।
भैयाकेँ पढ़ि नोन खोऔलहुँ,
फुसिए फटके नोप चुऔलहुँ
सोझरायल परिवार अपन छल तकरे देलहुँ बिगाड़ि कनिया।
हम सब बुझलहुँ लिखलि पढ़लि छी,
मुदा अहाँ तँ चानि चढ़लि छी,
बोल ओल सन सन बाजी, क्यौ नेबो सकय नहि गारि कनिया।
नाक ठोर फरकाबी दून,
कृपा करू किछु हमरो सून,
माय-बाप की पाठ पढौलनि ? अयलहुँ की मनमे नेयारि कनिया।
पुरूष पछाड़नि थिकहुँ की बहुरिया,
सैंतू साड़ी, गहना गुरिया,
कोंढ़ कपै’ए सत्ते कहै ’ छी ताकू न आँखि गुड़ारि कनिया।