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रंग भरी ये होली प्रीतम / गिरधारी सिंह गहलोत

रंग भरी ये होली प्रीतम
खेलूँ बोले मेरा जिया
   
रंग नेह का लिए खड़ी मैं
 आतुर आज प्रतीक्षा रत
कब आओगे भेजो पतियां
भूलो आज सजनवा मत
द्वार निहारे नयन बावरे
आकुल व्याकुल मेरा हिया
   
रंग भरी .....
   
पांच होलियां गुजरी कब से
छुआ नहीं है रंगों को
नहीं रोकना सम्भव सैंया
मन में उठी उमंगों को
रखूं अगन में दबा सुलगती
कैसे बोलो अब मैं पिया
   
रंग भरी .....
   
फागुन में चलती पुरवाई
मस्त मुझे है कर देती
मधुर कल्पना प्रिय आने की
कष्ट सभी है हर लेती
जतन बुलाने का तुमको जो
कर सकती थी मैंने किया
   
रंग भरी ये होली प्रीतम
 खेलूँ बोले मेरा जिया