भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ।
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ।
गुनगुनाता है चमन इनके लिये,
फूल पत्तों की ज़ुबाँ हैं तितलियाँ।
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ।
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए,
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ।
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए,
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ।