भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रचना / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
यूं तुम्हारे प्रति
समर्पित तो नहीं हूं
किंतु जब भी,
वेदना के विवर, यायावर
पगों को बांध लूंगा,
चेतना के उस प्रथम क्षण को
तुम्हारा नाम दूंगा,
अभिव्यक्ति के उस प्रथम
स्वर को
तुम्हारा नाम दूंगा।