रची उषा ने ऋचा दिवा की
- निशा सिरानी;
सुख के आमुख खिले कमल-मुख,
- पुलके प्रानी;
रूप अनूप धूप के धन के
- खिले मुकुल से,
महिमा हुई मही की गोचर,
- रज की रोचक;
भूचर के स्वर, खेचर के पर
- भास्वर हुलसे:
जल में जगी ज्योति की रम्भा-
- मल की मोचक ।
रची उषा ने ऋचा दिवा की
सुख के आमुख खिले कमल-मुख,
रूप अनूप धूप के धन के
महिमा हुई मही की गोचर,
भूचर के स्वर, खेचर के पर
जल में जगी ज्योति की रम्भा-