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रफ़्तार से तेज़ / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
मैं देख रहा हूं
अपने बेटे और बेटी को
जिनके कंधे
अब उचक कर
मेरे कंधे को पार कर जाना चाहते हैं
मैं देख रहा हूं
उनकी आंखों को
जिनमें सात नहीं
हज़ार रंगों वाले इन्द्रधनुष तैरते हैं
मैं सुन रहा हूं
उनके कानों में
हज़ार सुरों वाली
स्वर-लहरियां बज रही हैं
मैं महसूस कर रहा हूं
उनके बाजुओं को
जो समय को बांधने को बेसब्र हैं
और उनकी अंजुरियां
जो सितारों को बटोर रही हैं
मैं तक रहा हूं
उनके पांव
जो रफ़्तार से तेज़ हो रहे हैं
कहीं लड़खड़ा न जाएं वे
इसलिये बन जाना चाहता हूं
गति-अवरोधक
किन्तु फिर सोचता हूं
गिरेंगे, तभी तो बढ़ेंगे
पूर्ण होकर, अबाध, लक्ष्य तक।