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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 7

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राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 42, 43 )

 (42)

प्रबल प्रचंड बारिबंड बाहुदंड बीर,
 धाए जातुधान, हनुमानु लियो घेरि कै।

 महाबलपुंज कंुजरारि ज्यों गरजि , भट,
जहाँ-तहाँ पटके लँगूर फेरि-फेरि कै।

मारे लात, तोरे गात, भागे जात हाहा खात,
कहैं, ‘तुलसीस! राखि’ रामकी सौं टेरि कै।

ठहर-ठहर परे, कहरि-कहरि उठैं,
हहरि -हहरि हरू सिद्ध हँसे हेरि कै।42।

(43)

जाकी बाँकी बीरता सुनत सहमत सूर,
जाकी आँच अबहूँ लसत लंक लाह-सी।

सोइ हनुमान बलवान बाँको बानइत,
 जोहि जातुधान-सेना चल्यो लेत थाह-सी।

कंपत अकंपन, सुखाय अतिकाय काय,
 कुंभऊकरन आइ रह्यो पाइ आह-सी।

देखें गजराज मृगराजु ज्यों गरजि धायो,
 बीर रघुबीर को समीरसूनु साहसी।43।