राजेन्द्र नाथ रहबर / रहगुज़र / शोभा कुक्कल
शोभा कुक्कल ग़ज़ल जगत का एक मुमताज़ और सुहाना नाम है। उनका ग़ज़ल संग्रह "रहगुज़र" के नाम से पाठकों के हाथों में है। इस से पूर्व उन का एक कविता संग्रह 2010 ई. में "क़तरा क़तरा लम्हा लम्हा" क्व नाम से प्रकाशित होकर मक़बूल हो गया है।
शायरी परमात्मा की देन है। यह हर किसी को वदीअत नहीं होती। ज़बानदानी से भी इस का कोई तअल्लुक नहीं है। यदि ऐसा होता तो सभी भाषाओं के पी.एच.डी, डॉक्टर, अदीब फ़ाज़िल, मुंशी फ़ाज़िल, प्रभाकर पास और ज्ञानी पास, शायर या कवि होते। अनपढ़ लोगों ने भी शायरी की है। सन्त कबीर ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था। हम आज भी उन के दोहे सुनते हैं और ताज़ा दम महसूस करते हैं। शायर को ख़ुदा का बेटा और शायरी को पैग़म्बरी कहा गया है। दूसरे शब्दों में शायर परमात्मा का संदेश वाहक है। शोभा कुक्कल खुशनसीब हैं कि उन्हें एशिया की मक़बूल-तरीन विधा "ग़ज़ल" में अपनी तबीयत के जौहर दिखाने का अवसर प्रदान हुआ है। वह एक सशक्त आवाज़ के रूप में उभर कर हमारे सामने आई हैं। इस का सुबूत उन का कलाम पढ़ने पर पाठक को मिल जायेगा । वज़ ग़ज़ल विधा की नज़ाकतों, बारीकियों, और रमजों से पूरी तरह वाकिफ़ हैं। उन का फ़न निखरा हुआ है। वह एक रौशन दिमाग शायरा हैं और उनके कलाम की नफासत और विषयों की रँगा रंगी उन्हें भीड़ से अलग करती है। उन्होंने हर उस विषय पे कलम उठाया है जो शायर और पाठकों को हमेशा प्रिय रहे हैं। उन की हर ग़ज़ल में दो तीन अशआर ऐसे मिल जाएंगे जो आबदार मोतियों की तरह चमकते हैं और हमारे दामने-दिल को थाम लेते हैं। उन की शेरी बसीरत और शायराना खुश सलीक़गी उन की ग़ज़लों को पठनीय बनाती है। वह पाठकों को अपने जज़्बात वा म्हसूसात में शामिल कर लेने के हुनर से ख़ूब वाकिफ़ हैं। वह बड़ी नफासत और बड़े सलीके से अपनी ग़ज़ल की दुनिया सजाती हैं। वह जो भी महसूस करती हैं या देखती हैं उसे पूरी सिद्क़-दिली के साथ शेर के सांचे मव ढाल देती है। उन की शायरी पुरफ़रेब हद तक आसान है। कलाम मव कहीं कोई पेचीदगी नहीं। पाठक को सोचना नहीं पड़ता कि शायरा क्या कहना चाहती है। उधर शेर शायरा के कलम से निकला उधर पाठक के दिल में उतरा। शोभा कुक्कल एक अच्छी शायरा होने के अतिरिक्त एक नफीस इंसान भी हैं। विश्वास न हो तो मिल के देख लें।
शोभा जी ने शायरी को एक इबादत, एक आराधना, एक परस्तिश, ईश्वर पूजा, ख़ुदा की बन्दगी या तपस्या के रूप में अपनाया है। शायरी उन के नज़दीक दिल का सुकून हासिल करने का एक ज़रीआ है। दिल का सुकून पाने के उनके तरीके सब से अलग हैं।
- हम को दिल का सुकून मिलता है
फ़ाक़ा मस्तों को कुछ खिलाने से
- मंदिर से कम न होगा ये तेरा मकान फिर
इस में किसी फ़क़ीर को खाना खिला के देख
शोभा जी बुज़ुर्गों, प्रतिष्ठित और सम्मानित साहित्यकारों और अदीबों से बड़े अदीब, बड़ी तमीज़ और बड़ी इज़्ज़त के साथ पेश आने में यकीन रखती हैं। ये उनके बड़प्पन की दलील है।
- उन से मिलती हूँ मैं अदब के साथ
लोग मिलते हैं जब पुराने से
- होते हैं सफल काम इसी वास्ते मेरे
हर वक़्त मिरे साथ बुज़ुर्गों की दुआ है
- एहले-इल्मो-फ़न मिलेंगे जब कभी
हम अदब से सर झुकायेंगे ज़रूर
- बुज़ुर्गों की दुआ लेना मिरी आदत है देरीना
मिरा सर सामने उन के हमेशा खम ही रहता है।
शोभा जी ने अपने कुछ अशआर में संसार और इंसानी ज़िन्दगी की नापाएदारी या नश्वर होने की ओर भरपूर इशारे किये हैं।
-दुनिया है चार दिन की सब आ कर चले गये
सब अपना अपना राग सुना कर चले गये
- समय के साथ इस की ताबनाकी घटती जाती है
चिराग़े-उम्र किस का है कि जो मद्धम नहीं होता
-इक दिन माटी हो जायेगा
तेरा उजला उजला ये तन
शोभा जी की शायरी रिवायती अंदाज़े-फ़िक्र से सीधे सपाट रास्तों पर नहीं चलती और इस का उन्हें एहसास भी है कि वह आम रविश से हटकर लिखती हैं।
- भीड़ से मैं अलग हूँ ऐ 'शोभा'
क्यों करो भीड़ में शुमार मुझे
शोभा कुक्कल ने कहीं शरारत भरे शेर भी कहे हैं। मुलाहज़ा फरमाएं उन के ये शेर-
- डॉक्टर भी शहर के फूलें फलें
शहर को बीमार होना चाहिए
- तो थाने में जाने से क्या फायदा है
अगर जाके थाने में खाई न लातें
- ख़ुदा जाने अंजाम शादी का क्या हो
मगर नाचती जा रही हैं बरातें
ज़िंदा कौमें अपने शहीदों को हमेशा याद रखती हैं। शोभा जी ने भी अपने शेरों में शहीदाने-वतन को सच्चे दिल से याद किया हैं-
-उन शहीदों को वतन वाले नमन करते रहें
जिन को सरहद पर वतन के काम आ जाना पड़ा
- ऐ देश की हवाओं शहीदे-वतन हैं हम
बुझने न पाए शमा हमारे मज़ार की
'मां' के पवित्र रिश्ते पर आजकल अच्छे-अच्छे शायर शेर कहे जा रहे हैं। शोभा जी का भी एक शेर इस विषय में देखें-
-कोई बच्चा हो, बूढा हो, जवां हो, मर्द हो, जन हो
ज़रूरत सब को है मां की दुआ के शामियाने की
'किनाया' से सही में बड़ी ख़ूबी पैदा हो जाती है। किनाया का अर्थ है किसी का नाम लिए बग़ैर उस की ओर संकेत कर देना जैसा कि इस शेर में कृष्ण भक्त 'मीरा' जी की ओर किया गया है।
-कौन वो प्रेम की दीवानी थी जिस ने 'शोभा'
ज़हर का छलका हुआ जाम उठाया होगा
कच्ची उम्रों की लाउबाली और तेज़, तुन्द जज़्बात में डूबी हुई महब्बत और उसकी खुदकुश सोच का ज़िक्र एक शेर में शोभा जी ने किया है
-मिलने देगा न ये जहां हम को
आओ दरिया में डूब जाते हैं
एक बार एक शायर साहिब आगे आगे भाग रहे थे और दूसरे शायर साहिब उन्हें पकड़ने के लिए पीछे भाग रहे थे। किसी ने पीछे भागने वाले शायर से पूछा "मियां, क्या हुआ" तो उन्होंने उत्तर दिया कि वो अपनी ग़ज़ल मुझे सुना कर भाग गया है। और मेरी ग़ज़ल सुन कर नहीं गया। हास्य रस में डूबे हुए इस ख़याल को शोभा जी ने अपने एक मक़ते में यूँ अदा किया है।
- शोभा मिरा कलाम किसी ने नहीं सुना
सब अपने अपने शेर सुना कर चले गये
सियासी लोग जनता की उम्मीदों, आशाओं पर खरे नहीं उतरे। शोभा जी ने भ्रष्टाचारियों, घपलेबाजों, रिश्वत खोरों, सियासतदानों, बयानबाज़ी करने वाले नेताओं, दागियों, गरीबों के हितों के विरुद्ध काम करने वालों और देशवासियों की नींदें उड़ा देने वाले बेशर्म लोगों को आड़े हाथों लिया है और फटकार लगाई है।
- कहो लीडरों से बयां बाज़ी छोडें
कभी गांधी जी का ये चर्खा भी कातें
- देश की नींद उड़ा रक्खी है जिन लोगों ने
आओ उन की भी कभी नींद उड़ा कर देखें
-शायद कि इलेक्शन में खड़ा होना है उस को
वो शख्स मुझे आज बहुत झुक के मिला है
- रच गई है नसों में अब रिश्वत
क्या मुदावा हो इस खराबी का
- न जाने कब मिरे भारत में वो सरकार आयेगी
कि जिस सरकार के हाथों गरीबों का भला होगा
-दागियों की भीड़ है जाती जिधर भी है नज़र
सब यहां खोटे ही खोटे हैं, ख़रा कोई तो हो
- ये नेता नए दौर के तौबा तौबा
जो खा जाएं आटा ये वो हैं परातें
- जो सोचा हम ने महँगाई का कारण एक दिन 'शोभा'
भ्रष्टाचारियों की सामने पूरी कतार आई
अपनी ग़ज़लों में शोभा जी ने बड़ी सरल भाषा अपनाई है। ये उन की किसी कमज़ोरी की नहीं बल्कि सामर्थ्य की दलील है क्योंकि मुश्किल शब्दों का सहारा लेकर अच्छा शेर कह लेना या कोई बड़ा ख़याल शेर में गुज़ार देना आसान हैं। इस के बर-अक्स मुश्किल शब्दों का सहारा लिए बग़ैर सरल, सलीस शब्दों में अच्छे शेर कहना अपनी जगह एक मुश्किल फ़न हैं शोभा जी स्वयं भी सरल स्वभाव की मालिक हैं।
- हर किसी पर यकीन कर लेना
ऐसी 'शोभा' मिरी 'सरलता' है
शोभा जी जानती हैं कि शायरों को सदैव जन साधारण के करीब रहना चाहिए। शायर को चाहिए कि वह आम लोगों के सुखों , दुखों, उन की खुशियों और हसरतों तक अपने आप को फैलाये क्योंकि कोई भी शायरी जन साधारण से कट कर या दूर रह कर ज़िंदा नहीं रह सकती। शोभा जी किसान भाइयों की परेशानियों में अपने आप को शरीक़ करती हुई कहती हैं
-फल नहीं मिलता उन को मेहनत का
बे करारी सी है किसानों में
- किसानों की जो हालत है सभी के दिल पे रौशन है
कहां से बीज ये लाएंगे अपनी फ़स्ल बोने को
आखिर में शोभा जी के कुछ ऐसे शेर जिन में शायरा की आत्मा को भिन्न भिन्न रंगों में देखा जा सकता है, पेश करके इस दास्ताने-दिल-पज़ीर को यहीं ख़त्म करता हूँ
-ख़ुदा महफूज़ रक्खे हर बला से
चलन अच्छे नहीं है इस सदी के
- अफवाहों के इस दौर में ऐसा भी हुआ है
जो मैं ने कहा भी नहीं वो उस ने सुना है
- शहर भर में है आज कल चर्चा
तेरी सूरत की लाजवाबी का
- खुश कर पाऊं इष्ट देव को अपने मैं
ऐसा तू फ़नकार बना दे ऐ मौला
- वो एक राही था उस को नहीं ठहरना था
तू ज़िहनो-दिल पे उसे क्यों सवार करता है
- ऐ ज़िन्दगी सुना है तू बेहद हसीन है
तू मुझ गरीब को भी कभी मुस्कुरा के देख
- रौशनी गुल है शहर भर की आज
झोंपड़ी में चराग़ जलता है
- रोटी जब जा के मिली होगी किसी मुफ़लिस को
पेट की थाप पे इक गीत सुनाया होगा
दुआ है कि शोभा जी का फानूस-ए-सुखन हमेशा जगमगाता रहे और रौशनी बिखेरता रहे। उन के पाठक उन के कलाम से फैज़याब होते रहें। शोभा जी ने 70 के करीब दोहे भी कहे हैं। क्या अजब उन का आगामी संग्रह दोहा संग्रह हो। खैर! आस रखनी चाहिए कि यह ग़ज़ल संग्रह उन का शनाख्त नामा सिद्ध होगा और वक़्त की रेत पर अपने कदमों के निशानात छोड़ जायेगा और शोभा जी की शुहरतों और नेक नामियों की बस्तियां दूर दूर तक कायम करेगा।
आमीन!