रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले / जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’
रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले
रक्त पाटल-अधर प्रिय प्रतीक्षा करे।
थाल-दीपक सजा गन्ध कर्पूर का
चारु चन्दन हरिद्रा विलेपित वदन
रोलिका पुष्प केशर सुमन मानिनी
रूप मोहक बसा एक मानस-सदन
मौन मनुहार संकेत पद्धति भली
पाँव पायल थिरक राग-निर्झर झरे।
रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले
रक्त पाटल-अधर प्रिय प्रतीक्षा करे॥
आयताक्षी कला पुष्पशर साथ में
हाथ कंचन-कलश तीर्थ-जल से भरा
रत्नभूषण लसी केश वेणी बँधी
मालती-मल्लिका-स्नात सौरभ खरा
लाज निर्बन्ध द्वारे खड़ी देखती
देह निर्वात माणिक शिखा-सी जरे।
रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले
रक्त पाटल-अधर प्रिय प्रतीक्षा करे॥
खोल उर-पोटली स्नेह-मुक्तावली
मुक्त कर से मनोरम समर्पण सधे
दूर आलस श्रमित बिन्दु सीकर-सुधा
पानकर तृप्ति सम्मोह बन्धन बँधे
लाल कोपल हुए गाल पर गाल रख
चाँदनी-गात-संस्पर्श अनुभव परे।
रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले
रक्त पाटल-अधर प्रिय प्रतीक्षा करे॥
पद्मरागान्विता रम्य रजनी ढली
चन्द्रमा गुरु-प्रिया-वक्ष उपधान ले
खो गया नींद-सागर में गोता लगा
स्वप्न-माणिक्य का लोभ उपमान ले
आ गया भोर प्राची अरुण पट हुआ
मन्त्र मुखरित हुए ऋषि कमण्डलु भरे।
रातरानी खड़ी प्रीति-उपहार ले
रक्त पाटल-अधर प्रिय प्रतीक्षा करे॥