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रात सपने में / राम सेंगर
Kavita Kosh से
फिर दिखी हो,
कड़क सुन सौदामिनी की जागते हैं
रात सपने में ।
मेघमाला से निकल कर
देखती हो, मुस्कुराती हो ।
पार्श्व में कुछ चिटखता है
फूँक से उसको उड़ाती,
झिलमिलाती
पास आती हो ।
कीच में कन्धों गड़े हम
निरे भावावेग से बाहर उमड़कर भागते हैं
रात सपने में ।
फिर दिखी हो,
कड़क सुन सौदामिनी की जागते हैं
रात सपने में ।