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रानी / रजनी परुलेकर / सुनीता डागा
Kavita Kosh से
एक आवेग के साथ उसकी बात ख़त्म होते ही
फैली हुई गहन स्तब्ध शान्ति
दुपहर की तीखी किरणें सौम्य हो गईं
उसके विरोधियों के हिंस्र नाख़ून भी भोथरे होते गए
अपने सात्विक क्रोध में वह भस्म हो गई
एक तेजस्वी, सुनहरा पीला रंग
आकाश में सरसराता चला गया
उसके मस्तक पर उसका मुकुट चढ़ गया
क़दम-क़दम पर संघर्ष का मुक़ाबला करते हुए
बिना पुरुष के गुज़ारा एकाकी जीवन
रक्त का उबाल, शब्दों का तेज
उसके कठोर चेहरे की रूखी चमड़ी का
बन गया एक फ़ौलादी कवच
जिसने सूरज के बिम्ब को ढँक दिया
उसके तत्त्व-निष्ठ शब्दों की
तलवार-सी धार
साधारण-से नाक-नक़्श पर चढ़ गई
और एक विलक्षण सुघढ़, निग्रह से भरा चेहरा
मध्याह्न के सूरज की तरह
आकाश में चमकता रहा ।
मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा