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राम राम / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
Kavita Kosh से
कुत्ते का मांस-कुत्ते नहीं खाते।
पूँछ नीची कर
वे तकते हैं-एक दूसरे की ओर
हू-ब-हू एक
जैसे कि वे एक दूसरे के आईने हैं।
राम राम!
तोप के पहिये में चाहिए थोड़ा-सा तेल।
अभी तक तो बड़ी मौज-मस्ती से चलता रहा निज़ाम
अब शैतानों को बाहर खदेड़ने की है ज़रूरत
चाहिए एक ज़बरदस्त सरकार
बन्दूक सरकार
जिसके मन्त्री हों जल्लाद
इसके बाद ही देखा जाएगा,
कि ज़मीन का स्वाद
भूल जाता है कि याद रखता है
रोके से न रुकनेवाला, आज़ाद
छोटा-सा तेलंगाना।