भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रावण का नाम मिटेगा / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
रावण हर साल जला है,
रावण हर साल जलेगा।
यह रावण महँगाई का,
यह रावण दंगाई का।
रावण भ्रष्टाचारों का,
झूठी क़समों, नारों का।
इसने हर साल छला है,
ऐसे कब तक छलेगा?
यह रावण उत्पातों का,
राजा काली रातों का।
यह साथी दुःख-दुविधा का,
यह दुश्मन सुख-सुविधा का।
यह पापों का पुतला है,
थोड़े दिन राज चलेगा।
तब कोई राम उठेगा,
सच का झंडा फहरेगा।
सच से फिर झूठ पिटेगा,
रावण का नाम मिटेगा।
युग-युग से यही चला है,
रावण फिर हाथ मलेगा।