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राहें बुलाती हैं / प्रेमलता त्रिपाठी
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दूर तक फैली हुई राहें बुलाती हैं ।
मील के पत्थर बनों मुझको सिखातीं हैं ।
शांत चिंतन साधना देती सहारा जो,
चेतना की ज्योति जो अंतस जगातीं हैं
नित्य यादों को बुलाकर पास लातीं जो,
मद भरी मुस्कान में मुझको डुबातीं हैं ।
बस गये हो तुम हृदय में शांत उपवन से,
बैठ कर तनहाइयाँ भी गुनगुनातीं हैं ।
प्रेम मन भाया अकेला पन सरस चिंतन,
शांत रजनी स्वप्न आँखों में सजातीं हैं ।