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राह ये जिन्दगानी की अनजान है / रंजना वर्मा
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राह ये जिन्दगानी की अनजान है
कब किसी से हुई तेरी पहचान है
ख़्वाब बनकर निगाहों में तू बस गया
तू मिले अब यही दिल में अरमान है
तू मसीहा ज़माने का है बन गया
मुफ़लिसों के लबों की तू मुस्कान है
आ गयी टूट कर है जवानी मगर
इश्क़ के मामले में तू नादान है
हैं मुहब्बत की राहों में उलझन भरी
चल सकोगे खुदा ग़र मेहरबान है
हार देना न हिम्मत किसी बात से
अब ख़ुदा ही तुम्हारा निगहबान है
अश्क़ पोंछो ग़र किसी मजलूम के
मत कभी सोचो ये कोई दान है