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रिमझिम बरसै पनियाँ / ब्रह्मदेव कुमार
Kavita Kosh से
रिमझिम बरसै पनियाँ हे,
सुनोॅ ए धनियाँ।
बादल गरजै, बिजुरी चमकै
झम-झम झमाझम, पनियाँ झमकै।
झमकै जेना गदरल जवनियाँ हे
सुनोॅ ए धनियाँ॥
सावन बरसै, भादोॅ बरसै
जाड़ गुलबिया, बदनमां सरसै।
कसमस करै नथुनियां हे
सुनोॅ ए धनियाँ॥
कोन्टा-उहारी, छर-छर बरसै
पोखरी मेॅ राहू-बोआरी चमकै।
चमकै जे अखिया के पनियाँ हे
सुनोॅ ए धनियाँ॥
बकरी सिनी भागै, बैहारी सेॅ देखोॅ
बुतरू सिनी नाहै, दुआरी पेॅ देखोॅ।
ऐंगना मेॅ नाहै दुल्हनियाँ हे
सुनोॅ ए धनियाँ॥
घरोॅ-दुआरी, बैहारी मेॅ पानी
मनमां जे उमकै, हे पानी-बेपानी।
उगै जे सतरंग असमनियाँ हे
सुनोॅ ए धनियाँ॥