रिश्ता-ए-उल्फ़त को तोड़ूँ किस तरह ?
इश्क़ से मैं मुँह को मोड़ूँ किस तरह ?
पोंछने से अश्क के फ़ुर्सत नहीं,
आस्तीं को मैं निचोड़ूँ किस तरह ?
बाद मुद्दत हाथ आया है मिरे,
अब ददा मैं उस को छोड़ूँ किस तरह ?
वो लगाता ही नहीं छाती को हाथ,
अपनी छाती मैं मरोड़ूँ किस तरह ?
शीशा-ए-दिल तोड़ कर ’रंगी’ मिरा,
अब तू कहता है मैं जोड़ूँ किस तरह ?