भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेखता (अलिफ नामा 3) / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलिफ आप अनदर बसै, बे बतलावे दूर।
ते तनमेँ तहकीक कर, अलिफ अजायब नूर॥1॥

से सालिस हो समझले, जीम जहान बसीर।
हे हवाल खे खाक मेँ, आखिर होत खमीर॥2॥

दाल दिलहिमेँ दोस्त है, जाल जिकर कर पेश।
रे रहीम के राह चढ़, जे जिन्दा दर्वेश॥3॥

सीन सपेद सुवास गुल, शीन शिकम दर माँहि।
साद सुरत साबूत है, जाद जमीर झराहि॥4॥

तो तालिब दिल्दार हो, जो जालिम! उठ जागु।
अैन अकीदा वाँधि ले, गैन गाफिली त्यागु॥5॥

फे फाजिल अन्दर पढे, काफ कोरान तमाम।
काफ करे मत काहिली, लाम लेत निज-नाम॥6॥

मीम मेरा माशूक है, नूँ नादिर कोइ जान।
वाव वहीके फिकरमेँ, हरदम रहु मस्तान॥7॥

लाम लेहु ठहरायके, अलिफ अकेला सोय।
हम्जा इये मुर्शिद बिना, धरनी लखे न कोय॥8॥