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रेल / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
कतनां सुन्दर लागै रेल
छुक-छुक करतें भागै रेल,
देखै में लागै छै कŸो लंबा
बड़का-बड़का हेकरोॅ डिब्बा।
दिल्ली-पटना सगरोॅ पहुँचावै
तनियोॅ नै रेलें देर लगावै,
भीड़-भीड़ छै पेलमपेल
छुक-छुक करतें भागै रेल।
इंजिनोॅ में कोयला के आगिन
जबेॅ चलै तेॅ लागै बाघिन,
धुइयाँ जबेॅ छोड़ै सरंग में
चलतें लागै कोनोॅ डाकिन,
सही बात छै, समझें नै खेल
छुक-छुक करतें भागै रेल।
टीसन-टीसन जाय छै रेल
सब केॅ घर-घर पहुँचावै रेल,
मोटर सें पैसा कम लागै
सब केॅ बहुत सुहावै रेल,
बिना टिकट कटैनें जैबेॅ जेल