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रे मन ! / महेन्द्र भटनागर

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रे मन !
बीती गाथाओं की स्मृति पर
तुम अश्रु बहाना मत पल भर,

जीवन में आहें भरना मत
इससे दुर्बलता आती है,
धूल उदासी की छाती है,
बन जाता जीवन शुष्क-विजन !
रे मन !
रे मन !
मूक रुदन के गीत न गाना,
भूल निराशा ओर न जाना,

तूफ़ानों में दीपक से तुम
हँस-हँस तिल-तिल जलते रहना,
आघात सभी सहते रहना,
तभी तुम्हारा सार्थक जीवन !
रे मन !
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