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रोटी / मनमोहन
Kavita Kosh से
पूर्वी उत्तरप्रदेश की सरहद से
पंजाब लाई है रोटी
इस आदमी को
परिवार इसका पेट है
जो पूर्वी उत्तरप्रदेश में जलता है
अपनी पिण्डलियाँ ले आया है
पंजाब वह आदमी
रक्त ख़र्च हो रहा है
रोशनी ख़र्च हो रही है
हर पल इसकी नसें सख़्त हो रही हैं
पंजों से ज़िंदगी का पहिया
चलाते हुए
शहर के अंधे कुएँ से
इसकी पिण्डलियाँ दिन भर खींचती हैं
रोटियाँ
जो दिनो दिन पत्थर की तरह
भारी हो रही हैं ।
(1979)