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रोशनाई लिये / हरीश भादानी

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चलें, आग के रंग की
रोशनाई जिये
सांस के रंग में
एषणाएं भिगोते हुए
संकल्प की
एक तस्वीर रेखें
कोरे पड़े
हर दिशा के सफ़े पर
रोशनाई लिये
एक आवाज को
आंधियों में बदल
जहां भी अबोले उठी
कल की चोटियां
सभी को
ढहा लाएं जमीं पर
रोशनाई लिये
भर गई है
धुएं ही धुएं से सदी
आंख भी यूं फिरे कि
देखें कहीं और दिखे और ही
पोंछ दें, आंज दें
भरे धूप से अंजुरी
रोशनाई लिये
अजनबी सी जिये है
इकाई-इकाई
टूटे यहीं हां यहीं
आदमी की लड़ाई
उघाड़ें भरम
असल एक चेहरा दिखाएं
रोशनाई लिये