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लबे-मोजिज़-बयां ने छीन लिया / नासिर काज़मी

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लबे-मोजिज़-बयां ने छीन लिया
दिल का शोला जबां ने छीन लिया

दिल मेरा शब-चराग़ था जिसको
मिज़-ए-खूंफिशां ने छीन लिया

उम्र भर की मुसरर्तों का ख़ुमार
खलिश-ए-नागहां ने छीन लिया

तेरा मिलना तो खैर मुश्किल था
तेरा ग़म भी जहां ने छीन लिया

आ के मंज़िल पे आंख भर आई
सब मज़ा रफ्तगां ने छीन लिया

हर घड़ी आसमां को तकता हूँ
जैसे कुछ आसमां ने छीन लिया

बाग़ सुनसान हो गया 'नासिर'
आज वो गुल खिज़ा ने छीन लिया।