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लाचारी (दू) / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तोरा की पता हमरॅ पिया
घरॅ में सबके सुतला पर
डरली-नुकैली
ओहारी कोनटा होली
सबके आँखी सें अपना केॅ बचैने
गाँव सें कोस भर चली केॅ
अतना दूर ऐली छी हम्में

केकरा लेली ऐली छियै?
तोहरे लेली नी
कि तोंय हमरा ऐतें
बजी उठभौ
बाँस वन के सिसकारी नांकी
आरो हमरा देखथैं दौड़ी जैभौ दोनों हाथ फैलेने
समेटी लेभौ आपनॅ दोनों बाँहीं में
-हमेशा-हमेशा लेली
मतुर ई सब कुछुवे नै होलै।
सुखले रहले ठोर
पियासले रहलै मॅन।

हमरॅ किंछा पर पानी फेरै बाला मीत!
आय ई विश्वास कैन्हें तोड़ी रहलॅ छॅ
कि महीना के प्रत्येक पूरनिमा राती में
हम्में दोनों
रात के यही सुनसान अजबारी बेरा में
यही पीपरॅ गाछी के नीचेॅ
एक-दू सालॅ सें नै
कतना सालॅ सें खनैखन मिली रहलॅ छियै

की भेलै
जों तोरा बोलैला पर भी
स्त्री होयके मजबूरी सें
हों, कहला के बादो नै आबॅे पारलियै।

तोहें की नै जानै छॅ पिया,
जनानी के सौंसे जिनगी
मर्द के हाथॅ में गिरवी राखलॅ रहै छै
कुमारी में बाप
बिहैला पर पुरुख
बुढ़ारी में बेटा
आखिर परम्परा के ई बन्धन केना केॅ तोड़तियै?

जों ई हिम्मत हम्में क्षन्हैं में नै जुटाबेॅ पारलियै
तेॅ यही सें हमरॅ प्यार, केना झुठ्ठी समझी लेलौ

हों, हम्में नै आबेॅ पारलियै
तहूँ भी तेॅ कत्तेॅ दिन यहेॅ रं
कही केॅ नै ऐलॅ छॅ
तेॅ की भेॅ गेलै?
जों हम्में आय नै आबेॅ पारलियै
जों अतनै टा बातॅ ल,
तोहें रूसी गेलॅ छॅ

तेॅ आबॅ
दण्ड देॅ हमरा
हम्में तोरॅ सब मनमानी सहै लेॅ तैयार छियौं
मतुर ई रं जलाबॅ नै
तड़पाबॅ नै
रिसी-रिसी केॅ मारॅ नै
कनाबॅ नै।