लाठी / सतीश कुमार सिंह
आदिम भय से जूझने के लिए
सबसे विश्वसनीय साथी
आज भी है लाठी
संस्कृति और परंपरा के
कई कई चिन्हों को
अपनी हर पोर में दबाए
काल भेदन कर
कितने मुहावरों में
अनवरत है उसकी
ठक-ठक की गूँज
अंधे की लाठी
बूढ़ापे की लाठी से होते हुए
वह सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुई इस दौर में
जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली
कहावत के साथ
पुरखों के पागा के संग
गहरा रिश्ता रहा लाठी का
उन दिनों कुनबे के
घर के जवान सदस्यों को
गिना जाता था लाठियों में
ठीक शोले के गब्बर सिंह के
कितने आदमी थे की तर्ज पर
कितने लाठी हैं किसान?
घर के मुखिया से पूछता था
कोई परदेशी मेहमान
पुलिस के सिपाहियों का तो
बहुत बड़ा सहारा है यह
जिस पर उनकी नौकरी का
पूरा दारोमदार है
उनके हाथों में
चार्ज रहता है यह हमेशा
कुत्ते की नींद में भी
लहराता रहता है यह
उसकी एक ठक की आवाज़ पर
काँप जाती है उसकी रूह
बाँस और तेंदूसार की लाठी को
तेल पिलाकर
रंगीन फुंदरों से उसका सिंगार कर
दोनों हाथों में लिये
नाचते हैं दोहा पारते
मेरे छत्तीसगढ़ के यादव वीर
अगहन की उतरती सांझ में
ढोर-डांगर को
ठीक ठीक रास्ते पर हाँकती यह लाठी
महात्मा गाँधी की
दांडी यात्रा की याद है
लाठी सिर्फ़ लाठी नहीं
एक भरी पूरी सभ्यता की बुनियाद है