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लिखकर गीत रात भर रोये / धीरज श्रीवास्तव

अक्षर -अक्षर प्राण सँजोये
लिखकर गीत रात भर रोये

मतलब के सब रिश्ते नाते
देख देखकर बस मुस्काते
जकड़े बैठी हमें विवशता
हम मुस्कान कहाँ से लाते
कब बुनते नयनों में सपने?
गुजरी उम्र न पल भर सोये
लिखकर गीत रात भर रोये

निठुर नियति के राग पुराने
दुख बैठे हैं लिए बहाने
किस किससे हम ठगे गये हैं
पीड़ा कहे खड़ी सिरहाने
जीवन भर हम व्यथित हृदय को
सिर्फ निचोड़े और भिगोये
लिखकर गीत रात भर रोये

साथ नहीं हैं भले उजाले
पर कब हारे लिखने वाले
बात अलग है कदम- कदम पर
फूट रहे पाँवों के छाले
इन छालों की पीड़ाओं को
हम गीतों में रहे पिरोये
लिखकर गीत रात भर रोये