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लुका-छिपी / नरेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
बिटिया ...
घर से निकलती है
घूम-घाम
वापस आ
पिता की आँखों में
ढूँढ़ती है कुछ
पिता भी लौटे हैं अभी
बिटिया को अपनी ओर
ग़ौर से ताकते देख
चौंकते नहीं
बस, हौले–से मुस्कुरा देते हैं
हाँ,
शुरू में चौंके थे ज़रूर
उन्होंने भी
महसूस किया है इधर ...
बिटिया की आँखों ने
देखना अधिक,
बोलना कुछ कम कर दिया है