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लुक्खी के घोॅर / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
फुदकल फुदकल आबै लुक्खी
धूप देखि बौराबै लुक्खी
पत्ता झड़लोॅ छै ढेला सें
थर थर थर थर्राबै लुक्खी
लपकी झपकी फोॅल, तोड़ी केॅ
कुतरी कुतरी खाबै लुक्खी
देखभो कभी उदास नै होकरा
मतर बड़ी धबराबै लुक्खी
धोॅर समुच्चे सुन्दर लागै
सब के मोॅन लुभाबै लुक्खी
गाछ ओढ़ना गाछ बिछौना
गाछे घोॅर बनाबै लुक्खी
कटल्हौं गाछ, बिलल्ला होय कॅे
घोॅर बिना मर जाबै लुक्खी