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लोग चिढ़ते हैं / महमूद दरवेश / विनोद दास
Kavita Kosh से
लोग चिढ़ते हैं
अगर दिन की रोशनी में हम टहलते हैं
और मैं तुम्हारा मुँह हाथ में लेकर दीवाल के कोने में ले जाकर
चूम लेता हूँ
तुम्हारी आँखें
मैं तुम्हारी सोती हुई आँखों को देखने का सपना देखता रहता हूँ
तुम्हारे होंठ
मैं चूमते समय तुम्हारे होंठों को देखने का सपना देखता रहता हूँ
और किरनों से धुला हुआ तुम्हारा चेहरा मैंने देखा
देखा संगमरी नावों से घिरी गजदंति नदी
फिर मैं बचपन के स्तनपान के पास लौटूँगा
दुखों के कुएँ से
अपनी रगों में सुरा की तासीर लाने के लिए
लोग चिढ़ते हैं अगर मैं सड़क पर
तुम्हारे हाथों में अपना सिर रखता हूँ
और तुम्हारी कमर को चिपटाकर चलता हूँ
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास