लोग सपनों की बातें करते थे। हमारा एक भी सपना ऐसा
नहीं था कि उसे जिया जाए। हर सपना बिलकुल वैसा ही
था, उतना ही डरावना जितना हमारा जीवन था।
फिर कोई और जीवन था।
हम सपने लेना भूल गए थे। उनके लिए समय नहीं था,
न गुंज़ाइश ही थी। जीवन बहुत व्यस्त था। तेज़ी से बीत
रहा था।
एक अन्य जीवन में हमारे सपने ही हमें छोड़ गए थे।
हमारी कल्पना सूख गई थी। उसमें रंग और बिम्ब नहीं
आते थे।
लोग सपनों की बातें करते थे।