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लोग हुए बेताल से / जयकृष्ण राय तुषार
Kavita Kosh से
इस मौसम की
बात न पूछो
लोग हुए बेताल से ।
भोर नहाई
हवा लौटती
पुरइन ओढ़े ताल से ।
चप्पा-चप्पा
सजा-धजा है
सँवरा निखरा है
जाफ़रान की
ख़ुशबू वाला
जूड़ा बिखरा है
एक फूल
छू गया अचानक
आज गुलाबी गाल से ।
आँखें दौड
रही रेती में
पागल हिरनी-सी,
मुस्कानों की
बात न पूछो
जादूगरनी-सी,
मन का योगी
भटक गया है
फिर पूजा की थाल से
सबकी अपनी
अपनी ज़िद है
शर्तें हैं अपनी,
जितना पास
नदी के आए
प्यास बढ़ी उतनी,
एक-एक मछली
टकराती जाने
कितने जाल से ।