भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोरी / आन्ना अख़्मातवा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहीं दूर घने जंगल में
नीली नदिया के पास
ग़रीब लकड़हारा रहता था एक
अपने बच्चों के साथ ।

उसका छुटका बेटा था, बस,
उँगली भर लम्बा,
चुप हो बिटवा, चुप होकर सो जा,
बुरी है तेरी अम्बा ।

ख़बरें हम तक कम हीआती हैं
गृहस्थी हमारी वंचिता,
श्वेत सलीब जिसे मिला उपहार
वो थे तेरे पिता ।

दुख था, दुख आगे भी होगा
दुख का कोई अन्त नहीं,
रक्षा करें वो तेरे पिता की
पावन येगोरी सा सन्त नहीं ।

1915

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए 
               Анна Ахматова
                Колыбельная

Далеко́ в лесу огромном,
Возле синих рек,
Жил с детьми в избушке тёмной
Бедный дровосек.

Младший сын был ростом с пальчик, —
Как тебя унять,
Спи, мой тихий, спи, мой мальчик,
Я дурная мать.

Долетают редко ве́сти
К нашему крыльцу,
Подарили белый крестик
Твоему отцу.

Было го́ре, будет го́ре,
Го́рю нет конца,
Да хранит святой Егорий
Твоего отца.

1915 г.