भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त रफ़्तार से अपनी चलता रहा / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
वक़्त रफ़्तार से अपनी चलता रहा
और संसार पल पल बदलता रहा
थोड़े ग़म थोड़ी खुशिया सभी को मिली
चोट खा खा के इंसा संभलता रहा
तुझसे मिलने की चाहत में ए ज़िन्दगी
चाँद आँगन में शब् भर टहलता रहा
उसने भी गरम लहजे में गुफ़्तार की
खून मेरा भी दिन भर उबलता रहा
पा-ये-तकमील तक तो न पंहुचा कभी
ख्वाब तो मेरी आँखों में पलता रहा