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वन्दना / प्रतिभा सक्सेना
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अंध तम का एक कण मै,
तुम अपरिमित ज्योतिशाली,
दीप के मैं धूम्र का कण,
तुम दिवा के अंशुमाली!
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मैं अकिंचन रेणुकण हूँ,
तुम अचल हिमचल निवासी!
मृत्युमय ये प्राण मेरे,
ओ प्रलय के भ्रू-विलासी!
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वन्दना निष्फल न जाये,
देव यह आशीष देना,
स्वर न हारे विश्व-तम से,
वे अनल के गीत देना!