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वन की प्रकृति वामा / केदारनाथ अग्रवाल
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हास-हर्ष-हुलास की यह हरी जाया
फूल-फल से, रूप-रस से भरी काया
पात-पात प्रकाश-दीपित प्रकृति वामा
वात-वास-विलास-जीवित सुरति श्यामा
हर रही दव, कर रही संभूत माया
परस अपरस-विरस पर कर रही दाया
जठर जड़ भी चलित चित चैतन्य होते
देखते ही चूमते छवि, धन्य होते
गमक अग का मदन-मद-सा विपुल बहता
पवन पथ का कथन मधु का अतुल कहता
अयन छवि के नयन अन्तर्नयन खुलते
वनज-वन के सदल सम्पुट वदन खुलते ।