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वयस्क / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
Kavita Kosh से
कितनी सहज है
एक टुकड़ा हंसी !
देखूँगा
वह हंसी
इसीलिए आता हूँ
सभी समझते हैं इसे
वयस्क व्यक्ति की
एक कमज़ोरी
उनकी उस सब समझ की ओर
पीठ फेर कर मैं
टकटकी लगाकर देखता रहता हूँ
सिर्फ़ तुम्हारी ओर
देखता हूँ कि
किस तरह
नवधारा जल में उतर आती है —
कथा और हँसी,
हँसी और कथा ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी