वर्तमान / कुमार विमलेन्दु सिंह
कालखंड नहीं हूँ मैं मात्र
साम्भव्य मेरे अधीन है
कुछ भी नहीं है प्रबलतर मेरे समक्ष
प्रत्येक शक्ति ही क्षीण है
भविष्य की क्षमता का भी
मैं ही तो परिमाण हूँ
निर्निमेष देखो मुझे
मैं ही वर्तमान हूँ
प्रगल्भता मेरी निधि सही
पर जिह्वा नहीं वाचाल है
गति ही मेरी प्रवृति है
छवि मेरी ही हर काल है
अपने रजत रथ पर विराज कर
निरन्तर अबाध गति से चलायमान हूँ
निर्निमेष देखो मुझे
मैं ही वर्तमान हूँ
सलिला कि भांति बहता हूँ
विरंति के भी सम्मुख मैं
धरित्री की भांति सहता हूँ
दुष्कर्मों के भी सब दुख मैं
परिस्थितियों की नग्रता का
मैं ही सुशोभित परिधान हूँ
निर्निमेष देखो मुझे
मैं ही वर्तमान हूँ
मेरी दृष्टि में है समाहित
प्रवाह असीमित रचनाओं का
मेरे ह्रदय में है प्रवाहित
सागर असीमित इच्छाओं का
मुझमें निहित है कई विध्वंस
किन्तु मैं ही भविष्य का निर्माण हूँ
निर्निमेष देखो मुझे
मैं ही वर्तमान हूँ
शर्वरी भी देखी है मैंने
और देखा है कई प्रभात
हर्ष में भी लिप्त रहा हूँ
और सहे हैं कई आघात
इस सृष्टि के अस्तित्व का
मैं ही तो एकमात्र प्रमाण हूँ
निर्निमेष देखो मुझे
मैं ही वर्तमान हूँ